

कुमारी पारधी एक दशक से अधिक समय से धान के झूमर बना रही हैं. धान के झूमर, अक्टूबर-नवंबर माह के दौरान धान की कटाई के बाद पकी बालियों और डंठल से बनाया जाता है. इसे सजावट के लिए घरों में इस्तेमाल किया जाता है. इस किसान ने धान के झूमर बनाना शुरू किया, क्योंकि उन्होंने देखा कि रायपुर के बाज़ार में लोगों की दिलचस्पी इन झूमरों में बढ़ रही है. वह इन बाज़ारों में जंगली घास से बुने झाड़ू और कूड़े का तसला बेचती हैं.
छत्तीसगढ़ में धान की कटाई का समय दिवाली के त्योहार के वक़्त आता है. घर में नया अनाज आने पर पक्षियों को दाना खिलाने के लिए, लक्ष्मी पूजा करने के बाद घरों के दरवाज़ों पर अलग-अलग आकृति के धान झूमर लटकाए जाते हैं. ये झूमर धान की पकी बालियों से बनाए जाते हैं और इस राज्य में फ़सल कटाई के सीज़न, त्योहार, और पक्षियों के भोजन के बीच के संबंध का प्रतीक हैं.

साल 2018 की एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़, छत्तीसगढ़ में 3.76 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन पर व्यापक रूप से चावल की खेती की जाती है. यह देश की चावल उत्पादन करने वाली भूमि का दसवां हिस्सा है. कुमारी के गांव बुडेनी में ज़्यादातर कामकाजी लोग खेती से जुड़े काम करते हैं, और कुमारी जैसे किसान और उनके परिवार के लोग अतिरिक्त आय के लिए धान से सजावटी सामान बनाते हैं. वह कहती हैं, “जिनके पास खेती की ज़मीन नहीं है वे लोग इसे बाज़ार से ख़रीद लेते हैं.” कुमारी के परिवार के पास धमतरी ज़िले के मगरलोड ब्लॉक में लगभग 6 एकड़ ज़मीन है. इस ज़मीन पर वे धान की खेती करते हैं. वह यह भी कहती हैं, “मेरे दो बेटे हैं. छोटा बेटा पढ़ता है और खेती के काम में भी मदद करता है.”


एक और झूमर निर्माता हैं कुमारी सोनवानी. वह राजधानी रायपुर में धान झूमर बेचने के लिए, अपने गांव से पूर्व की तरफ़ 50 किलोमीटर की यात्रा करके यहां आई हैं. कुमारी कहती हैं, “हम इन्हें बेचकर हर साल 3-4,000 रुपए तक कमा सकते हैं.” पिछले बरस कोरोना की वजह से कुमारी बहुत अधिक बिक्री नहीं कर सकी थीं. वह कहती हैं, “दुनिया की कमाई बंद हो गई थी, और हमारी भी.”

कुमारी सोनवानी, कुरुद (चोरमुड़िया) ब्लॉक के मरौद गांव की रहने वाली हैं. धमतरी ज़िले में स्थित उनके गांव के अधिकतर लोग किसान या खेतिहर मज़दूर हैं. वह बताती हैं कि “छत्तीसगढ़ में धान के झूमर, दीवाली के त्योहार का हिस्सा हैं.”


रायपुर के एक ख़ुले बाज़ार, ‘पुरानी बस्ती’ में, बुडेनी की ही मिलवंतिन पारधी भी धान के झूमर बेच रही हैं. उन्होंने इन्हें एक महीने पहले बनाना शुरू किया था, और अब बेचने के लिए शहर लेकर आई हैं. वह धान के सूखे डंठलों को बुन रही हैं, ताकि एक और झूमर बनाया जा सके. वह कहती हैं, “हमें शहरों में अधिक मुनाफ़ा मिलता है, इसलिए हम पैसा ख़र्च करके यहाँ आते हैं. “
Editor's note
प्रज्ज्वल ठाकुर, रायपुर में स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल के 11वीं कक्षा के छात्र हैं. पारी पर उनकी पिछली स्टोरी (बिहाइंड द व्हील, ऐट अ क्रॉसरोड्स) 18 जून 2021 को प्रकाशित हुई थी. वह धान के झूमर पर आधारित यह स्टोरी करना चाहते थे. वह कहते हैं, "इस रिपोर्टिंग ने मुझे त्योहारों में किसानों की भूमिका तथा छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्यों में धान के महत्व के बारे में और अधिक जागरूक किया. पारी एजुकेशन के साथ काम करते हुए मुझे उस समाज का एक नया नज़रिया दिखा जिसमें मैं रहता हूं."
अनुवाद: शोभा शमी
शोभा शमी दिल्ली में काम करने वाली एक मीडिया प्रोफ़ेशनल हैं. वह लगभग 10 सालों से देश-विदेश के अलग-अलग डिजिटल न्यूज़ रूम्स में काम करती रही हैं. वह जेंडर, मेंटल हेल्थ, और सिनेमा आदि विषयों पर विभिन्न वेबसाइट्स, ब्लॉग्स, और सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स पर लिखती हैं.