
यह स्टोरी मूलतः हिन्दी में ही लिखी गई थी.
मेरा सपना एक दिन रेडियो जॉकी बनने का है.
मेरा नाम भगवान सिंह रावत है और मैं जन्म से ही देख नहीं पाता था. मेरे परिवार में, मेरी मां और मेरे दोनों भाई भी देख पाने में अक्षम हैं. मेरे स्वर्गीय पिता और दोनों बहनों की दृष्टि सामान्य रही.
मैं उदयपुर के एक कॉलेज में स्नातक तृतीय वर्ष में हूं, और रेलवे की सरकारी नौकरी पाने के लिए भर्ती-परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं. मेरे पिता खेतों में काम करने के दौरान सांप के काटे जाने के चलते अचानक गुज़र गए थे. अपने सभी बच्चों को शिक्षित देखना उनका सपना था.

मैं ब्रेल लिपि में लिखी किताब में बिन्दुओं को छूकर अक्षरों की पहचान करता हूं. मेरे पास सरकार का दिया एक डिजिटाइज़र है, जिसमें सभी किताबों की रिकॉर्डिंग मौजूद है. मैं इसे रोज़ सुनता हूं. मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. हमेशा से ही मेरे माता-पिता पढ़ाई के प्रति मेरा हौसला बढ़ाते रहे. मुझे सरकार से टॉकबैक सुविधा वाला एक लैपटॉप भी मिला है. चूंकि मैं ऑनलाइन पढ़ाई करने के लिए इंटरनेट का ख़र्च वहन नहीं कर सकता, इसलिए मैं टॉकबैक सुविधा का इस्तेमाल करता हूं.
किताबों की रिकॉर्डिंग सुनने से मुझे परीक्षा की तैयारी में मदद मिल जाती है. मुझे अपनी परीक्षा के लिए एक लेखक साथ ले जाना होता है, क्योंकि परीक्षा के दौरान मैं जो बोलूं वह लिखने के लिए मुझे किसी की ज़रूरत होती है. लेकिन वे एक परीक्षा का 200 से 300 रुपए ले लेते हैं, और मेरे पास इतने पैसे नहीं होते. कई बार जब अच्छा लेखक नहीं मिल पाता है, तो उस विषय में मेरे प्रदर्शन पर असर पड़ जाता है.
अगली बार मैं ख़ुद परीक्षा देने की योजना बना रहा हूं; मैं ख़ुद ही पेपर लिखने की कोशिश करूंगा. जितना मुझे आता है उतना मैं दूसरों को पढ़ा-सिखा भी सकता हूं; उनको भी जो देख सकते हैं. मैंने टीचर ट्रेनिंग (शिक्षक प्रशिक्षण) कोर्स कर लिया होता, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं थे.


मेरे बड़े भाई भूर सिंह 2019 में गुज़र गए. वह भी रेलवे परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. उनको टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) था; जब इस बात का पता चला था, इलाज के लिए बहुत देर हो चुकी थी और हमारे पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं थे.
जब मैं अपने नेताओं को आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाते सुनता हूं, तो मैं बस यही सोचता हूं कि मेरे लिए कुछ भी नहीं बदला. जब मैं और मेरी मां दुकान जाते हैं, तो अक्सर उन चीज़ों का दाम नहीं चुका पाते जो ख़रीदते हैं. इसलिए दुकानदार हमसे ब्याज वसूलता है. यही एक क़र्ज़ है जो हम पर चढ़ा हुआ है.
राजस्थान सरकार की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के तहत मुझे और मेरी मां को एक-एक हज़ार रुपए की पेंशन मिलती है. हमने पास में ही ई-मित्र के द्वारा एक वज़ीफ़े का फ़ॉर्म भी भरा है. हम ई-मित्र की मदद से पैसा निकालते हैं – यह एक टेक्स्ट मैसेज के द्वारा राशि की सूचना भेजता है, और फोन पर मौजूद टॉकबैक सुविधा की मदद से मैसेज सुन लेता हूं. मैंने यह फोन 7,000 रुपए में ख़रीदा था. मेरे मामा लक्ष्मण सिंह और मेरी बड़ी बहन ने फोन ख़रीदने के लिए मुझे यह पैसे दिए थे.
मेरा मानना है कि जो लोग देख नहीं पाते उन्हें ज़रूर पढ़ना चाहिए. मेरी आंखों में रौशनी नहीं है, लेकिन मेरे पास एक कामकाजी दिमाग़ है.
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Editor's note
पुखराज साल्वी ने राजस्थान के भीम गांव में स्कूल फ़ॉर डेमोक्रेसी (एसएफ़डी) में पारी की दो-दिवसीय रिपोर्टिंग वर्कशॉप में हिस्सा लिया था. एसएफ़डी का गठन मज़दूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) के सदस्यों और अन्य लोगों ने मिलकर किया था. पुखराज दो साल से उनके साथ काम कर रहे हैं. वह कहते हैं, “मैं यह स्टोरी इसलिए कहना चाहता था, ताकि हमारे समाज के उन लोगों के बारे में लिख सकूं जो ज़िंदगी में कुछ करना चाहते हैं और सफल होना चाहते हैं, लेकिन उनके पास ऐसा करने के लिए कोई संसाधन नहीं हैं.”
अनुवाद: सीत मिश्रा
सीत मिश्रा एक लेखक हैं, और बतौर फ्रीलांस अनुवादक भी काम करती है.