
“मैं अपनी माओं और बहनों से अपील करती हूं कि वे इस संघर्ष में पूरा उत्साह दिखाएं और अपनी दादियों को हमारी पीढ़ी पर गर्व करने का मौक़ा दें. किसान एकता ज़िंदाबाद! हम उसी तरीक़े से क़ानून वापस करवाएंगे जिस तरह से हम यहां बैठे हैं – एकजुटता और शांति से.” यह कहकर सोनिया मान माइक से हटती हैं और दूसरे वक्ता को माइक पकड़ा देती हैं.
30 वर्षीय अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता, सोनिया मान टिकरी बॉर्डर पर कई बार भाषण दे चुकी हैं, जो दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर स्थित एक महत्वपूर्ण विरोध स्थल है. सोनिया एक किसान की बेटी हैं और वह दिसंबर, 2020 में आंदोलन से जुड़ी थीं. वह बताती हैं कि वह अपने स्वर्गीय पिता से प्रेरित हैं, जो कीर्ति किसान यूनियन के राज्य स्तर के नेता थे.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली की बाहरी सीमा पर स्थित टिकरी में दो मंच बने हैं, जहां सितंबर 2020 में संसद द्वारा पारित कृषि क़ानूनों को निरस्त करवाने के लिए लाखों किसान 26 नवम्बर, 2020 से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. सोनिया टिकरी मेट्रो स्टेशन के पास बने मुख्य मंच पर भाषण दे रही थीं, जो संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने बनवाया है. दूसरा मंच, भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहण) या बीकेयू एकता उग्रहण ने बनवाया है, जो पकोड़ा चौक से छह किलोमीटर दूर है. ये दोनों मंच सुबह 11 बजे से शाम के 4 बजे तक संचालित किए जाते हैं और विरोध प्रदर्शन की आत्मा बन चुके हैं.
सभी घोषणाएं इन दोनों मंचों से ही की जाती हैं: यूनियनों की भविष्य की योजनाएं, कार्यक्रम या नेताओं के निर्देश; यहां तक कि विरोध प्रदर्शन के दौरान गुज़र गए किसानों के नाम लिए जाते हैं, साथ ही उनके पिता का नाम, आयु, और जन्मस्थान भी बताए जाते हैं.
टिकरी मेट्रो स्टेशन पर स्थित एसकेएम का मंच ही वह जगह है जहां से विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले हज़ारों ट्रकों और ट्रौलियों की एक लम्बी क़तार शुरू होती है. तक़रीबन 10 फ़ीट X 4 फ़ीट का यह मंच, हरे क़ालीन से पूरी तरह से ढका हुआ है. बारिश और सूरज की सीधी किरणों से बचाने के लिए, एक तिरपाल को छत की तरह इस्तेमाल किया जाता है. मंच ज़मीन से कुछ ऊंचाई पर बना है, इसलिए मंच के दाईं तरफ़ सात क़दम वाली एक सीढ़ी लगाई गई है. मंच पर चढ़ने से पहले, लोगों से जूते उतारने के लिए अनुरोध किया जाता है. म्यूज़िक सिस्टम को मंच के नेपथ्य में लगाया गया है, जिससे लोग तार में फंसकर गिर न जाएं.
हर सुबह 11 बजे जब किसान इस क्षेत्र के आस-पास एकत्रित होते हैं, तब दोनों मंच जीवित हो उठते हैं. यह एक जीवंत स्थान है, क्योंकि यहां अभिनेत्री सोनिया मान, अभिनेत्री स्वरा भास्कर, गायक रब्बी शेरगिल, और अभिनेता हरभजन मान जैसी मशहूर हस्तियां, घोषणाओं के बीच प्रस्तुति देती हैं.
पंजाब किसान यूनियन (एआईकेएम) की सदस्य, 60 वर्षीय जसबीर कौर नट बताती हैं, “हम हर वक्ता और अदाकार की पहचान की जांच करते हैं. उनको किसी भी राजनैतिक पार्टी का सदस्य नहीं होना चाहिए. हम लोगों को बोलने की अनुमति देते हैं [किसी कृषि यूनियन से जुड़े हुए नहीं], लेकिन सतर्क रहते हैं.” वह एसकेएम के मुख्य मंच पर हैं और वक्ताओं के नाम रिकॉर्ड कर रही हैं. वह बताती हैं, “अगले दिन मुख्य मंच पर बोलने वाले सदस्यों के नाम यूनियनों [किसान] के नेताओं को पिछली ही रात देने होते हैं.”
एक बार जब वक्ता को रजिस्टर कर लिया जाता है, उनको काग़ज़ पर एक नंबर लिखकर दे दिया जाता है और जब उनके नंबर की घोषणा की जाती है, तब उनको मंच पर पहुंच जाना होता है. मंच पर आने के बाद उन्हें बोलने के लिए 10 मिनट दिए जाते हैं.
दोनों मंचों पर और उनके आस-पास की जगहों (जहां से दर्शकों और श्रोताओं को सबसे अधिक दिखता है) पर प्रोटेस्ट का समर्थन करते हुए पोस्टर, बैनर, और झंडे लगे हैं. महिलाएं आगे की तरफ़ बैठी हुई हैं और पुरुष उनके पीछे बैठे हुए हैं, बीच में एक सूती रस्सी दोनों जगहों को अलग करती है. हर एक किलोमीटर पर स्पीकर लगाए गए हैं, जिससे कि हाइवे के किनारे ट्रैक्टरों में बैठे प्रदर्शनकारियों को सभी सूचनाएं मिलती रहें. हरियाणा के रोहतक ज़िले के किसान और भारतीय किसान यूनियन (कादियान) के सदस्य, 50 वर्षीय वेदपाल नैन बताते हैं, “यह मंच [एसकेएम] भारतीय किसानों की सहनशीलता और संघर्ष का साक्षी है.” जब शाम को 4 बजे मंच की सभी व्यस्तताएं ख़त्म हो जाती हैं, तब प्रदर्शनकारी और समर्थक उस क्षेत्र के आस-पास शांति मार्च करते हैं और नारे लगाते हैं.
पंजाब के संगरूर ज़िले के खड़िअल से आईं 50 वर्षीय बलजीत कौर बताती हैं, “हम यहां [पकोड़ा चौक मंच] सुबह हमारे भाइयों के साथ एक ट्रोली में आते हैं. हम क़रीब 12 बजे खाना बनाने के लिए वापस जाते हैं और क़रीब 3 बजे खाना खाने के बाद उसी ट्रोली से वापस आ जाते हैं.” वह अपने गांव की बाक़ी महिलाओं के साथ टिकरी के कैंप में रह रही हैं.
मंच पर चढ़ने का मौक़ा मिलने पर, आपको गन्ने का ताज़ा रस भी मिल सकता है. आर्मी में जाने के आकांक्षी, युवा सुमित बड़क बताते हैं, “हम रोहतक से तीन मशीनें लाए हैं. गर्मियां आने वाली हैं और तापमान रोज़ बढ़ रहा है. हम उन सभी लोगों को गन्ने का ताज़ा रस देंगे जो मंच पर बोलने आएंगे.” यह 21 वर्षीय युवा, रक्षा सेवाओं में भर्ती के लिए प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा है. वह प्रदर्शनकारियों को गन्ने का ताज़ा रस परोसने के लिए, फ़रवरी माह में रोहतक ज़िले में स्थित अपने गांव गुरौठी से 20 दोस्तों के साथ टिकरी आए थे.
हरिंदर बिंदु, बीकेयू एकता उग्रहण की एक नेता हैं. बीकेयू मंच से बोलते हुए वह कहती हैं: “महिलाएं आदमियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हुई हैं और नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं; हम लोग इस विरोध प्रदर्शन का आधार हैं. अगर महिलाओं की आवाज़ नहीं सुनी जाएगी, तो ऐसा कुछ नहीं हो पाएगा.”
जिन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ वह और दूसरे किसान लड़ रहे हैं, वह क़ानून सबसे पहले अध्यादेश के रूप में 5 जून 2020 को पारित हुए थे, फिर कृषि बिलों के रूप में 14 सितम्बर को संसद में पेश किए गए और जल्दी ही उसी महीने की 20 तारीख़ तक उन्हें अधिनियमों में तब्दील कर दिया गया. मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश 2020, कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अध्यादेश, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020, ये तीन कृषि क़ानून हैं.
किसान इन तीन क़ानूनों को अपनी आजीविका के विनाश के रूप में देखते हैं और बड़ी कॉर्पोरेट कपनियों के लिए किए जा रहे ज़मीन के विस्तार के रूप में देखते हैं, जिससे किसानों और खेती पर उनका नियंत्रण बढ़ सके. ये क़ानून किसानों को सहारे देने वाले प्रमुख कारकों, जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), कृषि उपज विपणन समितियों, और राज्य ख़रीद को भी कमज़ोर करते हैं. प्रत्येक भारतीय को प्रभावित करने वाले इन क़ानूनों की आलोचना इसलिए भी की गई है कि वे भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सभी नागरिकों को मिले क़ानूनी कार्रवाई के अधिकार को ख़त्म करते हैं.
क़रीब 12 लोगों अपनी यूनियनों (टिकरी पर पंजाब की 12 किसान यूनियन मौजूद हैं और 3 हरियाणा से हैं) के द्वारा चुना गया है, और वे एसकेएम के मंच पर बैठे हैं और भूख हड़ताल कर रहे हैं. ‘सुख हड़ताल’ कहलाने वाली इस हड़ताल में ये लोग 24 घंटों तक सिर्फ़ पानी ही पीते हैं. पंजाब के फ़िरोज़पुर ज़िले के ज़ीरा तहसील के एक 60 वर्षीय किसान और भारतीय किसान यूनियन (कादियान) के सदस्य प्रीतम सिंह बताते हैं, “हम यहां सुबह 11 बजे से बैठे हैं और हम लोग अगली सुबह तक हड़ताल पर बैठेंगे, जिसके बाद दूसरे 12 लोग हमारी जगह आ जाएंगे.” उन्होंने बताया कि यह हड़ताल ऐसे ही चलती रहेगी जब तक ये क़ानून निरस्त नहीं किए जाते.
मंच की सुरक्षा
प्रत्येक यूनियन, सुरक्षा संबंधी कार्यों के लिए 50 वॉलंटियर सदस्यों की लिस्ट भेजती है और इसलिए टिकरी में स्थित विरोध स्थल पर क़रीब 300-500 वॉलंटियर सुरक्षा प्रभारी के तौर पर लगाए गए हैं. उनको पहचान-पत्र दिए जाते हैं जिसे उन्हें शिफ़्ट ख़त्म होने पर वापस करना होता है. सुरक्षा वॉलंटियर मंच को और उसके पीछे वाले क्षेत्र, जहां पर पुलिस द्वारा भारी बैरिकेडिंग की गई है, उस पर नज़र रखते हैं. साहिल (वह सिर्फ़ इसी नाम का इस्तेमाल करते हैं) बताते हैं, “मंच [एसकेएम] के पीछे के क्षेत्र पर नज़र रखने के लिए, रोज़ाना आठ लोग 12 घंटे की ड्यूटी करते हैं.” वह बाक़ी स्वयंसेवकों के साथ चाय पी रहे थे, जब उन्होंने हमसे बात की. 25 वर्षीय साहिल फ़िरोज़पुर ज़िले के फज़िल्का से आए हैं, और किसान परिवार से हैं, जो अपनी छह एकड़ की ज़मीन पर गेहूं और चावल उगाते हैं.
पुरुष और महिलाएं, दोनों ही सुरक्षा कार्य में वॉलंटियर करते हैं, जिसमें रात में गश्त लगाना भी शामिल है, ताकि महिलाओं, बच्चों, और बुज़ुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. दिन के समय में उन लोगों को मंच के आस-पास बैठे प्रदर्शनकारियों को चाय पिलाने का काम दिया जाता है.
कीर्ति किसान यूनियन के एक सदस्य मोहन सिंह औलख बताते हैं, “हम यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी विरोध प्रदर्शन की शांति भंग न करे. किसान यहां पर न्याय की मांग करने आए हैं. कोई भी हिंसा नहीं चाहता है.” 25 वर्षीय मोहन नवंबर, 2020 से टिकरी बॉर्डर पर मौजूद हैं और एसकेएम मंच के एक सुरक्षा वॉलंटियर हैं. मोहन एक खेतिहर मज़दूर परिवार से आते हैं. वह मानते हैं कि ये क़ानून उनके समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे. मोहन कहते हैं, “क़रीब 3-4 लाख मज़दूर अपनी आजीविका के लिए मंडियों पर निर्भर रहते हैं. अगर मंडियां बंद हो जाएंगी, तो उनकी नौकरियां चली जाएंगी.”

सुरक्षा वॉलंटियर सरबजीत का परिवार, पंजाब के मोगा ज़िले के बिलासपुर में अपनी पांच एकड़ ज़मीन पर गेहूं और चावल उगाता है. उनका परिवार 8 लाख के क़र्ज़ तले दबा हुआ है. वह बताती हैं, “हम यहां अपने परिवारों के लिए आए हैं.” सरबजीत और उनकी दोस्त कमलदीप कौर, मंच के आस-पास के कामों में हाथ बंटाती हैं. कमलदीप, मोगा ज़िले के बाघापुराना तहसील से हैं और खेतिहर मज़दूर परिवार से आती हैं. वह बताती हैं कि उनके पिता एक दलित मज़दूर हैं, जो काम की तलाश में जगह-जगह घूमते रहते हैं और जब उन्हें काम मिलता है, तब दिन के 300 रुपए कमा लेते हैं, लेकिन आजकल काम मिलना मुश्किल हो गया है.
क़रीब 30 लोग मीडिया वॉलंटियर (फ़ोटोग्राफ़र, सिनेमैटोग्राफ़र, साउंड इंजीनियर, और सोशल मीडिया हैंडलर) के तौर पर काम करते हैं. सबसे अधिक दौड़-भाग करते दिखते हैं विकास कंबोज. यह 23 वर्षीय युवक, पंजाब के फ़िरोज़पुर ज़िले के जलालाबाद तहसील में स्थित ‘बाघे के उत्तर’ गांव से हैं. वह यह सुनिश्चित करते हैं कि बीकेयू एकता उग्रहण, मुख्य मंच से आने वाली हर सूचना को सोशल मीडिया के पेजों तक पहुंचाएं.

एसकेएम के मुख्य मंच के नेपथ्य के इलाक़े पर नज़र रखने वाले एक 30 वर्षीय एयरोस्पेस इंजीनियर, हरप्रीत सिंह हैं. उनका परिवार पंजाब के फ़रीदकोट ज़िले के गुज्जर गांव में स्थित अपनी पांच एकड़ की ज़मीन पर खेती करता है और गेहूं व चावल उगाता है. वह बताते हैं, “हमने चार साल पहले 7 लाख रुपयों [हमारे खेतों के लिए] का ऋण लिया था. ब्याज़ के साथ यह रक़म 11 लाख रुपए हो गई है. हमने 4 लाख रुपए तो चुका दिए हैं, लेकिन बाक़ी की रक़म बहुत ज़्यादा है – हम मुश्किल से सिर्फ़ इतना ही कमा पाते हैं जिससे पेट भर सकें, न कि हमारी जेबें.”
जसबीर कौर नट, माइक पर एक विशेष घोषणा कर रही हैं: “ट्रैक्टर और ट्रॉलियां व्यवस्थित ढंग से नहीं लगी हैं, जिसकी वजह से आने-जाने वालों को भारी जाम का सामना करना पड़ रहा है. हमने ट्रैक्टर और ट्रॉलियों को ठीक से लगवाने के लिए टीम बनाई है. कृपया उनका सहयोग करें.”
वह माइक से पीछे हटती हैं और अगले चरण की घोषणाएं शुरू हो जाती हैं; लाखों प्रदर्शनकारी किसानों के बीच ठंड के इस मौसम में शांति और एकजुटता बनाए रखने के लिए.
Editor's note
शिवांगी सक्सेना, नई दिल्ली के महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनजमेंट स्टडीज़ में पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातक कर रही हैं. दिल्ली-हरियाणा सीमा पर स्थित टिकरी पर जारी किसानों के विरोध प्रदर्शन को कवर करते हुए, पारी पर प्रकाशित होने वाली यह उनकी तीसरी स्टोरी है. वह कहती हैं: “इस शानदार और अनूठे आंदोलन को कवर करना बहुत ही बड़ा अनुभव था. पारी एजुकेशन ने मुझे प्रोटेस्ट को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने और तथ्यों से लैस मानवीय कहानियों को प्रस्तुत करने में मदद की है."
अनुवादः नेहा कुलश्रेष्ठ
नेहा कुलश्रेष्ठ, जर्मनी के गॉटिंगन विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स) में पीएचडी कर रही हैं. उनके शोध का विषय है भारतीय सांकेतिक भाषा, जो भारत के बधिर समुदाय की भाषा है. उन्होंने साल 2016-2017 में पीपल्स लिंग्विस्टिक्स सर्वे ऑफ़ इंडिया के द्वारा निकाली गई किताबों की शृंखला में से एक, भारत की सांकेतिक भाषा(एं) का अंग्रेज़ी से हिंदी में सह-अनुवाद भी किया है.