
यह स्टोरी मूल रूप से हिंदी में ही लिखी गई थी. पारी एजुकेशन, भारत के अलग-अलग इलाक़ों के तमाम ऐसे छात्रों, शोधार्थियों, और शिक्षकों के साथ मिलकर काम कर रहा है जो अपनी पसंदीदा भाषा में हमारे लिए लेखन, रिपोर्टिंग, और इलस्ट्रेशन तैयार कर रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों की ठंडी जलवायु और विशाल वन क्षेत्र, अनेक तरह की वनस्पतियों के फलने में मददगार है. राज्य के पर्वतीय ढलानों पर, घाटियों में, और यहां के शंकुधारी जंगलों व घास के मैदानों में पेड़-पौधे, झाड़ियां, और जड़ी-बूटियां बहुतायत में उगती हैं. वे स्थानीय भोजन में पोषक तत्वों के समृद्ध स्रोत हैं. जंगली खाद्य वनस्पतियों की लगभग 360 प्रजातियां यहां उगती हैं, जिनमें फल, फूल, बीज, पत्ते, जड़ें, तना, और कंद शामिल हैं. स्थानीय रसोई में इनका काफ़ी इस्तेमाल किया जाता है, और इनसे भाजी, चटनी, अचार, मसाले, और अन्य स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं. कांगड़ा ज़िले की रसोई से निकले कुछ पकवान यहां पेश हैं.
बुरांस फे फूल की चटनी

सपना देवी बुरांस (लैटिन नाम रोडोडेंड्रॉन) के गुलाबी फूलों से चटनी बनाती हैं, जो हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में साल में सिर्फ़ एक बार फलने वाले एक पेड़ पर उगता है. इस फूल की तलाश में उन्हें कांगड़ा ज़िले के कंडबारी गांव में स्थित अपने घर से चार किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ती है. बुरांस के फूल गर्मी के मौसम में उगते हैं, और पहाड़ों से इनको तोड़कर लाने की प्रक्रिया में पूरा दिन लग जाता है. हिमाचल प्रदेश में इसकी पंखुड़ियों से चटनी बनाने का चलन है.
बुरांस के फूलों को पहले धोकर दो से चार घंटे तक सुखाया जाता है, और फिर सूखने के बाद एक डिब्बे में रख लिया जाता है. इन फूलों का जूस भी पिया जाता है, जो बालों के लिए बहुत लाभदायक होता है. सपना देवी कहती हैं, “हमारी रसोई का अधिकतर सामान जंगल और पहाड़ से ही आता है. बुरांस के फूल दिखने में जितने ख़ूबसूरत होते हैं उनसे बनी चटनी भी उतनी ही स्वादिष्ट होती है, जिसे रोटी-सब्ज़ी के साथ खाया जाता है. यहां तक कि बच्चों को भी इसका खट्टा-मीठा स्वाद बेहद पसंद आता है.”
सपना का परिवार किसानों का परिवार है, और अपने गुज़ारे के लिए खेती और खेतिहर मज़दूरी पर निर्भर रहता है. उनके पति कोरोना लॉकडाउन से पहले तक कश्मीर में काम करते थे, लेकिन अब घर लौट आए हैं.






पतरोड़े के रोल

पतरोड़े के पत्ते सिर्फ़ बारिश के मौसम में अगस्त से अक्टूबर माह के बीच ही उगते हैं – और मौसम बदलने के साथ ही ख़त्म भी हो जाते हैं. जमुना देवी और किरण देवी, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले के कंडबारी गांव की निवासी हैं. जमुना देवी बताती हैं, “पतरोड़े हिमाचल प्रदेश में बहुत प्रसिद्ध हैं. इन्हें बोया नहीं जाता, ये अपने-आप ही उग आते हैं.” ये बाज़ार में नहीं मिलते, क्योंकि ये ज़्यादातर घरों में पाए जाते है.
जमुना देवी बताती हैं कि उनको चटपटे पतरोड़े बहुत पसंद हैं. हालांकि, इनको बनाने में काफ़ी समय लगता है.
गाढ़ा घोले गए बेसन और मसाले को पतरोड़े की पत्तियों पर लगाया जाता है, और पत्तियों को रोल किया जाता है. इसके बाद, इन रोल को भाप में पकाया जाता है और छोटे टुकड़े में काटकर परोसा जाता है. कई बार स्वाद बढ़ाने के लिए, ऊपर से तिल और नारियल का तड़का भी दिया जाता है.










लुंगडू की भाजी
जमुना देवी बताती हैं, “लुंगडू (ऑस्ट्रिच फर्न के लच्छेदार पत्ते; लैटिन नाम मैटेउकिया स्ट्रूथियोप्टेरिस) बहुत ही कम पकाया जाता है; मसलन, महीने में एक बार.” इनका मिलना मुश्किल होता है, और ये बारिश के मौसम में ही जंगल में उगते हैं. लुंगडू आसानी से बाज़ार में नहीं मिलते हैं और महंगे भी होते हैं – 1 किलो लुंगडू की क़ीमत लगभग 150 रुपए के आसपास होती है.




मूली का अचार
जमुना देवी बताती हैं कि मूली का अचार बनाने के लिए सबसे पहले मूली को कद्दूकस करना होता है, और फिर एक हफ़्ते तक धूप में सुखाना पड़ता है.
मूली को सुखाने के बाद, भाबरी का नमक बनाया जाता है. इसके लिए, भाबरी के पत्तों को पीसकर नमक मिलाया है और लाल व हरी मिर्च डाली जाती है. भाबरी का नमक हिमाचल प्रदेश में काफ़ी इस्तेमाल किया जाता है, और ककड़ी, नींबू, सलाद, और मकई वगैरह पर छिड़ककर खाया जाता है. भाबरी के पौधे की पत्तियों को धोकर साधारण नमक में मिलाया जाता है. इसके बाद, मिश्रण में कुछ हरी और लाल मिर्च भी डाली जाती हैं. यह स्वाद में थोड़ा तीखा और खट्टा होता है, क्योंकि भाबरी के पत्ते पहले से ही हल्के खट्टे होते हैं. स्थानीय इलाक़े में तुलसी के पौधे ख़ूब उगते हैं, जिस पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत नहीं पड़ती है, और इन्हें पोसना आसान होता है.
अंततः, मूली का अचार बनाने के लिए उसमें तेल, जीरा, नींबू के साथ-साथ भाबरी का नमक डाला जाता है. जमुना देवी कहती हैं, “मूली के अचार को हम 1 महीने से ज़्यादा नहीं रख सकते हैं.” हालांकि, इसे किसी भी मौसम में बनाया जा सकता है.





बबरू
गद्दी समुदाय से ताल्लुक़ रखने वाले रमेश राजपूत (60 साल) को कुकिंग करना और लोगों को प्यार से खाना खिलाना बहुत पसंद है. चार बच्चों (दो बेटे और दो बेटियां) के पिता रमेश, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में स्थित कंडबारी गांव में ‘आविष्कार’ और ‘साझे सपने’ संस्थाओं के लोगों के लिए खाना बनाते हैं. वह एक दिन में कम से कम 40 लोगों के लिए तीनों वक़्त का खाना बनाते हैं
उन्होंने यह काम अपने पिता से सीखा है, जो उनकी तरह ही अलग-अलग संस्थाओं के लिए खाना बनाने का काम करते थे. हिमाचल प्रदेश के सभी शुभ अवसरों पर खाई जाने वाली मिठाई, बबरू बनाने में उस्ताद रमेश कहते हैं, “सामने वाले को मेरा बनाया खाना मज़े से खाते हुए देखने में मुझे ख़ुशी मिलती है.”
बबरू को गेहूं के आटे, बेसन, चीनी, और दूध के घोल से बनाया जाता है. इसे शादी या किसी ख़ास मौक़े पर ही पकाया जाता है.






हिमाचली मीठे चावल
हिमाचल प्रदेश में शादी या किसी ख़ास अवसर पर मीठे चावल बनाए जाते हैं. रमेश जी की इस रेसिपी की सामग्री कुछ यूं है: घी, काजू, बादाम, किशमिश, दालचीनी के टुकड़े, लौंग, चावल, चीनी, दूध, दूध में भीगा चुटकी भर केसर, पानी, हल्दी, इलायची पाउडर.

रमेश मीठे चावल बनाते समय सबसे पहले दूध में केसर भिगो देते हैं. वह एक कड़ाही में डेढ़ चम्मच घी गरम करते हैं और उसमें काजू, बादाम, और किशमिश डाल देते हैं. जब किशमिश फूलने लगता है, तो कड़ाही से सबकुछ निकालकर एक प्लेट में रख देते हैं. वह कड़ाही में बचा घी गरम करते हैं और उसमें दालचीनी और लौंग डाल देते हैं. इसके बाद, वह इसमें चावल डालकर 2 मिनट तक भूनते हैं, और फिर चीनी मिलाते हैं. जब चीनी पिघलने लगती है, तब वह इसमें केसर वाला दूध, पानी, और हल्दी मिला देते हैं, और मिश्रण को पकाते हैं. उबाल आने पर, वह कड़ाही को ढंक देते हैं और इसे धीमी आंच पर पकने देते हैं. जब चावल का पानी सूख जाता है, तो वह गैस बंद करते हैं और इसमें पूर्व में फ्राई किए काजू, बादाम, किशमिश, और इलायची पाउडर मिला देते हैं. स्वादिष्ट मीठे चावल खाने के लिए तैयार हैं.
Editor's note
रिंकी यादव मध्य प्रदेश के दतिया जिले के माधोपुरा गांव की रहने वाली हैं. वह महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय से बीए अंतिम वर्ष पूरा कर रही है। उन्हें गैर-सरकारी संगठन, सहज सपने द्वारा एक साल तक चलने वाले मेंटरशिप और स्किलिंग प्रोग्राम के लिए चुना गया था, जिसमें PARI एजुकेशन के साथ डॉक्यूमेंटेशन पर एक छोटा कोर्स शामिल था। वह कहती है: “मुझे हिमाचल के भोजन के बारे में जानना बहुत दिलचस्प लगा और यह वह भोजन है जिसके बारे में हम नहीं जानते। सभी भोजन उनके अपने स्थानीय हैं और बाजार से नहीं, इसके बारे में जानना बहुत ही अनोखा था। मुझे परी में काम करने और सीखने में बहुत मजा आया।"